Top 10 Mantras of Good Parenting अच्छी परवरिश के 10 मंत्र जिससे बच्चा बनेगा IAS और ISRO साइंटिस्ट

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Mantras of Good Parenting से पहले हम इन सभी बातों से पहले एक रियल कहानी पर बात कर लेते हैं, जिससे हमको यह पता लगेगा कि हमारा बच्चा कैसा है, और क्या कर रहा है, और कैसे कर सकता है।

Mantras of Good Parenting
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कोलकाता का रहने वाला नवी क्लास का स्टूडेंट रोहित मोबाइल में हमेशा खोया रहता। कभी गेम्स, कभी दोस्तों के साथ चैट तो कभी यूट्यूब, उनकी अंगुलियां मोबाइल पर तेजी से स्क्रोल करतीँ। पेरेंट्स डॉक्टर तो वह अनसुना कर देता।

पेरेंट्स की चिंता अगले साल होने वाले बोर्ड की परीक्षा को लेकर थी। तब वे चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट के पास गए। रोहित ने बताया कि उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता। वह बड़ा होकर यूट्यूब पर बनना चाहता है। वह ऑनलाइन गेम खेलता है जिसमें उसे चैलेंजिंग टास्क मिलता है। एक यूट्यूबर को फॉलो करता है और उसकी तरह मशहूर होना चाहता है।

कोलकाता में सीनियर कंसलटेंट क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर इंद्राणी बताती है कि बच्चों के दिमाग में यह चीजें बैठ जाती हैं कि चाहे कुछ भी हो। उसे मशहूर होना है तब उसे सही गलत का फर्क नजर नहीं आता है।

रोहित के साथ यह स्थिति गलत पेरेंटिंग के कारण हुई।

अगर बच्चा कहता है कि मुझे यूट्यूब पर बनना है तो उसे डांट या प्रकार कर चुप नहीं करा सकते। उसे समझने और उससे बात करने की जरूरत है।

उसे यूट्यूबर बनने के लिए मना नहीं करें। उसे बताना चाहिए कि यूट्यूबर बनकर लंबे समय तक आप मशहूर नहीं रह सकते क्योंकि जानकारियों और ज्ञान की कमी होने पर आप अपने दर्शकों को ज्यादा दिन तक अपने से बांधकर नहीं रख पाओगे।

पेरेंट्स को चिंता रहती है कि उनके बच्चे कहीं बिगड़ न जाएं लेकिन जाने अनजाने बच्चे की परवरिश को लेकर कमियां रह जाती है-डाटाबेस कनेक्शन

लालन-पालन में पेरेंट्स यह गलतियां तो कभी नहीं करें

बाहर खेलने ना जाओ, गंदे बच्चे हैं– ऐसा करने से बच्चा सोसाइटी से कट जाता है। वह खुद को अलग समझने लगता है। (क्या करें– बच्चों को बाहर खेलने कूदने दें। वह बिगड़े नहीं इस पर नजर रखें)

बेटा पिज्जा-बर्गर ऑर्डर कर ले– बाहर से खाना मंगाने से बच्चों को जंक फूड की आदत लग जाती है, और बच्चों को लगता है मम्मी मेरे लिए खाना नहीं बना रही है। (क्या करें-मा या दादी घर में भी कुछ हेल्दी बनाकर खिलाएं, जिससे बच्चे को अच्छा लगेगा)

तो क्या बच्चे को गैजेट्स से भी नहीं दे – पेरेंट्स बच्चे को महंगे गैजेट्स दे देते हैं और वह खुद बिजी हो जाते हैं।(क्या करें – गैजेट्स नहीं देख कर बच्चे को लेकर पार्क जाए उनका स्क्रीन टाइम कम होगा)

ऑफिस में बहुत काम है, क्या करें– पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी फैमिली को लेकर टाइम मैनेजमेंट नहीं है।(क्या करें – जैसे ऑफिस में 8 घंटे की ड्यूटी है वैसे ही बच्चों के लिए टाइम फिक्स करें)

पापा मुझे लैपटॉप चाहिए, मेरे दोस्त के पास भी है– बच्चों को समझ में नहीं आता कि किसी भी चीज की कमी क्या होती है वह पेरेंट्स ना नहीं सुनना चाहते।(क्या करें-बच्चों को यह बताएं कि समय पर उसे चीजें मिल जाएंगी)

पेरेंट्स और बच्चे के बीच कम्युनिकेशन नहीं होता, तो क्या करें

पेरेंट्स को बताना चाहिए कि पहले फाउंडेशन को मजबूत करो, फिर जो कंटेंट लोगों के सामने लाना चाहते हो ले आओ।

अगर बच्चे को पहली बार में ही साफ मना कर दिया जाए तो उसे लगता है कि फेमस होने के लिए जितनी मेहनत की है उन सब पर पेरेंट्स ने पानी फेर दिया।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि पेरेंट्स और बच्चे के बीच कम्युनिकेशन गैप हो जाता है। पढ़ाई करो, यह सब नहीं करना है। पेरेंट्स इससे आगे कुछ नहीं बोलते। यानी वे बच्चों के मन में दबी उसकी इच्छा को जानने की कोशिश नहीं करते। बच्चा जो सपने बुन रहा होता है उसकी तह तक जाने, बच्चे से बात करनी और बच्चे को सही गलत बताने की इस प्रक्रिया में पेरेंट्स सब्र से काम नहीं लेते।

पेरेंट्स सोचते हैं-बच्चों की लाइफ वे डिजाइन कर रहे हैं

पेरेंटिंग क्या है? क्या गुड या बेड पेरेंटिंग हो सकती है?

इस सवाल के जवाब पर डॉक्टर इंद्राणी कहती है कि पेरेंटिंग अपने आप में पॉजिटिव शब्द है, एक गुण है, एक कला है, जिसे हर पेरेंट्स को सीखने की जरूरत है।

अपने देश में यह धारणा है कि बच्चे का जन्म हो गया है तो कोई मां बन गई है या किसी को पिता का दर्जा मिल गया। यानी लोगों को लगता है कि लालन-पालन में सीखने जैसी कोई चीज नहीं होती है। यह अपने आप आ जाती है। जब बच्चा दुनिया में आ गया तो पल भी जाएगा। साथ ही पेरेंट्स को भी यही लगता है कि बच्चे की लाइफ को डिजाइन करेंगे और सही डिजाइन करेंगे।

भोपाल में पेरेंटिंग कोच पल्लवी राज चतुर्वेदी के अनुसार पेरेंट्स अपनी उम्मीदें बच्चों पर थोपते हैं। उन्हें लगता है कि इससे बच्चे का फ्यूचर सिक्योर होगा।

मैं डॉक्टर नहीं बन पाया पर बैठे को डॉक्टर बनाऊंगा। यह उम्मीद पालने से बच्चे पर प्रेशर बढ़ता है। बच्चा अपनी पहचान खोने लगता है और उसकी पर्सनैलिटी डिवेलप नहीं हो पाती। इस तरह बच्चों की लाइफ बनाने के चक्कर में वे उनकी लाइफ बर्बाद कर देते हैं।

पेरेंट्स घिसी-पिटी सोच में डूबते-उतराते हैं, अपडेट नहीं होते

पेरेंट्स अक्सर कहते हैं कि ‘मैं क्या अपने बच्चे के लिए खराब सोचूंगा?’ यह सही है कि माता-पिता अपने बच्चे की भलाई के लिए ही फैसले लेते हैं लेकिन उनका फैसला सही है या गलत यह वे नहीं जानते।

अधिकतर पेरेंट्स खुद को वक्त के साथ अपडेट नहीं करते।

आज टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस है। AI का जमाना है। हर तरफ चीजें बदल रही है। पेरेंट्स अगर खुद को अपडेट नहीं करेंगे तो बच्चे के लिए अच्छे और बुरे का फैसला करने में पिछड़ जाएंगे।

इसलिए बच्चे से कई बार पेरेंट्स सुन लेते हैं कि आपको कुछ नहीं पता।

अच्छी परवरिश से बच्चे होंगे होनहार(Children will be promising with good upbringing)

  1. सख्त माता-पिता : बच्चे को हमेशा डिसिप्लिन में रखना, गलती पर सजा देना, बच्चों की बात नहीं सुनना, मारना-पीटना (ऐसी परवरिश का असर – बच्चे का self-esteem कम होगा, अपने इमोशंस किसी के साथ शेयर नहीं करेंगे, ऐसे बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं)
  2. समझदार माता-पिता : बच्चों को उनके इंटरेस्ट के अनुसार एक्टिविटी करने की छूट, बच्चों को ज्यादा फ्रीडम देना, यह न करो, वह ना करो जैसी गाइडलाइन से दूर रहना (ऐसी परवरिश का असर -बच्चे ज्यादा क्रिएटिव होंगे, ज्यादा सोशल होंगे, पेरेंट्स के साथ रिलेशन मजबूत होगा)

मम्मी की चिंता, हम इतनी मेहनत करते हैं फिर भी बच्चा रिजल्ट नहीं देता

‘ मैं तो अपने बच्चे को लेकर बहुत मेहनत करती हूं। उसे जो चाहिए देती हूं। रात दिन एक कर के काम कर रहे हैं लेकिन उसका रिजल्ट अच्छा नहीं है’

डॉक्टर इंद्रानी दत्ता बताती है कि कई मदर्स का यह बहुत बड़ा दर्द है।

सवाल यह है कि पेरेंट्स जिस मेहनत की दुहाई देते हैं क्या वह वाकई में मेहनत सही दिशा में कर रहे हैं?

बच्चा पढ़ाई में फोकस नहीं कर रहा, याद करने के बाद भी भूल जाता है या दूसरे बच्चों से पिछड़ा रहा है तो क्या कोई पेरेंट्स बच्चे की परेशानी जानने की कोशिश करता है?

हकीकत यह है की पेरेंट्स बच्चे की क्षमता को आंक नहीं पाते। उसकी क्वालिटी या उसकी कमी को पकड़ नहीं पाते।

स्लो लर्नर है या चीजों को याद नहीं कर पाता है तो इस कमी को दूर करने के लिए पेरेंट्स को सोचना चाहिए। न कि बच्चों को पीटना या उसे डांटना, फटकारना चाहिए।

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बेड पेरेंटिंग का असर माहौल में दिखता है

बेड पेरेंटिंग के कई उदाहरण सोसाइटी में देखने को मिल रहे हैं खाने-पीने, पार्क में घूमने, पब्लिक प्लेस में खराब बर्ताव और रोजमर्रा की बातें

कुछ जरूरी बातें जिनका पेरेंट्स को ध्यान रखना जरूरी है (Mantras of Good Parenting)

  • बच्चे चिप्स खाने के बाद खाली पैकेट पार्क में फेंक देते हैं, प्लेन में ट्रैवल करते समय कई बच्चे सीट पर ठीक से नहीं बैठते हैं वह चीखते चिल्लाते हैं, दूसरे पैसेंजर को परेशान करते हैं यह भी बेड पेरेंटिंग है।
  • बेड पेरेंटिंग ही नमूना है कि स्कूल कॉलेज में रैगिंग के बुरे मामले देखने को मिलते हैं डॉक्टर इंद्राणी कहती है कि किसी को गे कहकर चिढ़ाना, सेक्सुअल एब्यूज करना, गाली गलौज करना, जेंडर एब्यूज करना यह सब बेड पेरेंटिंग का ही उदाहरण है।

बच्चा अपने घर परिवार और सोसाइटी से ही सब कुछ सीखता है

मम्मी पापा वर्किंग है तो बच्चा बाहर से ही सीखेगा।

अगर पिता घर में हाथापाई करता है तो बच्चा वही सीखेगा। वह अपनी मां को पिता के सामने कमजोर पाता है। उसे लगने लगता है कि औरतें कमजोर होती हैं। वह किसी भी महिला को कमजोर ही देखेगा इससे उसकी पर्सनैलिटी पर भी बुरा असर पड़ेगा। अगर घर में लड़की यह सब देखती है तो उसके मन में गुस्सा करता है यह गुस्सा धीरे-धीरे जेंडर बेस्ड हो जाता है कुल मिलाकर कहें तो नेगेटिव पेरेंटिंग का असर पूरे समाज पर पड़ता है।

इसीलिए देश के बड़े शहरों में अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट(ECD) का भी कांसेप्ट पॉपुलर हो रहे हैं। यानी बच्चे को सही न्यूट्रिशन मिले, मेंटल हेल्थ, सोशल डेवलपमेंट को लेकर अधिक अलर्ट हो रहे हैं। जो एक बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी है।

डॉक्टर इंद्रानी दत्ता साइकोलॉजिस्ट कहती हैं-पेरेंट्स पहले से ही बच्चे से उम्मीद पाने लगते हैं जो वह न कर सके, अब वह बच्चे से करवा कर रहेंगे जिसे नेगेटिव पेरेंटिंग भी कहते हैं।

डॉ अनुराग अग्रवाल कहते हैं-कि माता-पिता पेरेंटिंग स्टील को सीखना नहीं चाहते। वह ट्रेडिशनल पेरेंटिंग को ढूंढना चाहते हैं जो उन्होंने अपने माता-पिता से सीखी है।

इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन समय के साथ बदलना भी जरूरी है।

डॉ अग्रवाल कहते हैं कि अगर सोसाइटी बेहतर चाहते हैं तो पेरेंटिंग पर ध्यान देना जरूरी है कि यही बच्चों में सुसाइड के मामलों में कमी लाएगा।

पेरेंटिंग का मतलब यही है अच्छा बच्चा, एक वेल डेवलप्ड, इमोशनल साउंड, और मेंटली हेल्दी बच्चा जो सोसाइटी के लिए कुछ कर सके, जो खुद के लिए भी सिक्योर बन सके।

गुड पेरेंटिंग के 10 मंत्र (10 Mantras of Good Parenting)

  1. बच्चों की गलती होने पर उस पर चिल्लाना, मारपीट करना और उसे झगड़ना नहीं चाहिए बल्कि उसे समझाना चाहिए।
  2. किसी भी कार्य या एक्टिविटी के लिए बच्चों पर दबाव नहीं बनाना चाहिए।
  3. बच्चों पर किसी प्रकार के सपने थोपना नहीं चाहिए। बच्चों को अपने इंटरेस्ट के अनुसार उन्हें एक्टिविटी चुनने दें जिससे बच्चे में आत्मविश्वास व सर्जनशीलता का विकास होगा।
  4. बच्चों की ग्रोथ के लिए मेंटर और गाइड बने और उसे सही गलत फर्क बताएं।
  5. बच्चे को स्कूल में अगर कम नंबर मिले हैं तो उसे नफरत नहीं करें और उसे बताएंगे तुमने तो कोशिश की।
  6. किसी माता-पिता के एक से अधिक बच्चे हैं और उनमें एक कमजोर एक होशियार हो तो दोनों के साथ समान व्यवहार करें नए की कमजोर वाले के साथ नफरत करें।
  7. बच्चों को हमेशा इंडिपेंडेंट करें न कि उसे कुछ करने न दें।
  8. माता-पिता को हर समय बच्चे की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे बच्चे का कॉन्फिडेंस लेवल कमजोर होगा।
  9. बच्चों को छोटे-मोटे काम में छोटी मोटी जिम्मेदारियां जैसे कपड़े पहनना, खेलना कूदना, साइकिल चलाना, आदि अन्य कार्य उसे खुद करने दे।
  10. बच्चे को सिखाएं की दुनिया में कोई परफेक्ट नहीं है सभी समान है किंतु जो अधिक मेहनत ईमानदारी से कार्य करेगा वह हमेशा सफल होगा

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